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मांगलिक दोष

जन्म कुंडली में मंगल ग्रह की अशुभ स्थिति के कारण मांगलिक दोष बनता है। इसकी वजह से शादी में देरी होती है। शादीशुदा जीवन में कलेश बना रहता है। पति-पत्नी की सेहत खराब बनी रहती है। प्रॉपर्टी संबंधी काम में रुकावटें या विवाद होते हैं। परिवार में विवाद और मनमुटाव भी होने लगता है। इन सब चीजों से बचने के लिए मंगल दोष की शांति करवानी चाहिए।

वर्तमान समय में मांगलिक दोष को लेकर कई प्रकार की भ्रांतियां समाज में प्रसारित की जा रही है, जैसे कि मांगलिक जातक का विवाह मांगलिक जातक से ही करना चाहिए नहीं तो दोनों में से किसी एक की मृत्यु हो जाती है। किंतु ऐसा नहीं है, जन्मपत्रिका में कई ऐसे योग होते हैं जिनसे मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है और यदि परिहार हो जाता है तो फिर विवाह की अनुमति दी जा सकती है। किंतु जन्म पत्रिका मिलान के पश्चात मांगलिक दोष की शांति भी होती है।
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गृहप्रवेश (वास्तु शांति)

नए मकान में रहने से पहले वास्तु शांति करवानी चाहिए। ऐसा नहीं करने से घर में कई तरह की परेशानियां आती हैं। पैसा नहीं बचता। घर के लोग बीमार रहते हैं। उन्हें किसी न किसी तरह का डर बना रहता है। कष्ट भी होते हैं। ऐसे घर में नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव भी रहता है। वास्तु शांति करवाने पर घर में शांति, सुख और समृद्धि बढ़ती है।

वास्तु पुरुष नमस्तेऽस्तु भूशय्या भिरत प्रभो ।
मद्गृहे धन धान्यादि समृद्धिं कुरु सर्वदा ।।
वास्तु ज्योतिष के अनुसार इस प्रक्रिया का प्रभाव हमारे कार्य प्रदर्शन, स्वभाव, भाग्य एवं जीवन के अन्य पहलुओं पर पड़ता है।
भवन बनवाते समय भी वास्तु दोषों का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि जिस भवन में वास्तु दोष होते हैं वहां रहने वाले व्यक्ति कभी भी समृद्ध नहीं होते वह सदैव अनेक प्रकार के क्लेशों से युक्त रहते हैं एवं उन्नति नहीं कर पाते अतः प्रत्येक व्यक्ति को भवन निर्माण के समय वास्तु दोषों का एवं गृह प्रवेश के समय वास्तु पूजन का कार्य संपूर्ण विधि के साथ संपन्न कराना चाहिए।
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कालसर्प दोष

कालसर्प दोष वर्तमान समय में सबसे ज्यादा विख्यात व प्रचलित है जिसका नाम आप बार-बार सुनते होंगे कई लोगों का मत है कि यह दोस्त प्राचीन पुस्तकों में नहीं पाया जाता किंतु सर्प दोष पाया जाता है हम इस विषय पर प्रकाश डालेंगे कि यह दोष कालसर्प दोष के नाम से पाया जाता हो या अन्य किसी नाम से किंतु जिस पर जातक की जन्मपत्रिका में यह पाया जाता है उसे इस दोष से जुड़े शुभ अशुभ फलदेखने को अवश्य मिलते हैं यह दोष कई प्रकार का होता है किंतु मुख्य रूप से यह 12 प्रकार का होता है।

इस दोष की शांति के लिए शास्त्रों में कई प्रकार के प्रायश्चित बताए गए हैं जिनमें से मुख्य रूप से राहु केतु का पूजन मंत्र जाप दान व हवन आदि किया जाता है क्योंकि यह दोष राहु व केतु के कारण निर्मित होता है इसलिए इन ग्रहों से संबंधित पूजन व दान करने से वह कुछ नियमों का पालन करने से इस दोष के अशुभ प्रभाव को शांत किया जा सकता है व शुभ प्रभाव को बढ़ाया भी जा सकता है।
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दुर्गा पाठ

दुर्गा पाठ अर्थात दुर्गा सप्तशती का पाठ जो मां दुर्गा की प्रसन्नता के लिए कराया जाता है दुर्गा सप्तशती 700 श्लोकों से सुसज्जित मां दुर्गा की स्तुति है जिसका पाठ मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए कराया जाता है इस ग्रंथ में भगवती की कृपा के अत्यंत सुंदर इतिहास के साथ बड़े-बड़े गूढ़ रहस्य एवं साधन भरे पड़े हैं कर्म भक्ति एवं ज्ञान की त्रिवेणी का इस ग्रंथ में अद्भुत संगम है यह भक्तों के लिए कल्पवृक्ष के समान है |

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।
नवचंडी जिसमें दुर्गा सप्तशती के 9 पाठ किए जाते हैं एवं एक पाठ से हवन किया जाता है | इसमें मां दुर्गा के तीन स्वरूपों का वर्णन है महाकाली महालक्ष्मी एवं महासरस्वती इन तीनों महा शक्तियों के तीन चरित्र एवं 13 अध्याय में विभक्त अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र भक्तों के जीवन में आ रही हर समस्या को जड़ से समाप्त करने में समर्थ है स्तोत्र के पाठ करने की कई विधियां है श्रद्धालु अपने श्रद्धा एवं शक्ति के अनुसार इसका अनुष्ठान कर सकते हैं |
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महामृत्युंजय मंत्र अनुष्ठान

महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव का अत्यंत शक्तिशाली एवं प्रभावशाली मंत्र है जो भी व्यक्ति निष्काम भाव से इस मंत्र का जप करता है या ब्राह्मणों के द्वारा करवाता है वह मोक्ष को प्राप्त करता है एवं यदि कोई व्यक्ति किसी कठिन परिस्थिति में फसा हो और इस मंत्र का विधान करता है तो वह उस स्थिति से जल्द ही छुटकारा पा लेता है जो भी व्यक्ति भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र का जाप करता है तो भगवान शिव उसके जीवन में आ रही सभी समस्याओं को समाप्त कर उसे शांति प्रदान करते हैं।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||
यदि आपको कोई असाध्य रोग हो या आप किसी गंभीर स्वास्थ्य संबंधित समस्या से गुजर रहे हो और मृत्यु होने का भय हो या आप किसी कानूनी समस्या से घिरे हों और कारावास जाने का संदेह हो या आप किसी बुरे रिश्ते में फस गए हो और बाहर आने का कोई मार्ग नजर ना आ रहा हो तब यह विधान आपके लिए सटीक उपाय है।
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रुद्राभिषेक

रुद्राभिषेक भगवान शिव के पूजन की विधि है इसमें शुक्ल यजुर्वेदीय रुद्र अष्टाध्याई के मंत्रों द्वारा भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है, भगवान शिव को जल की धारा अत्यंत प्रिय है इसलिए भी यह महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इसमें सतत भगवान शिव के ऊपर जल की धारा लगाई जाती है रुद्राभिषेक में भगवान शिव का प्रथम पंचामृत पूजन किया जाता है जिसके अंतर्गत भगवान शिव के ऊपर दूध दही घी शहद वर्षा से स्नान कराया जाता है एवं इसमें विशिष्टता के लिए भस्मा इत्र गन्ने का रस व अन्य फलों के रस को भी सम्मिलित किया जाता है |

रुद्राभिषेक में भगवान शिव का पंचामृत पूजन करके जल की धारा लगाई जाती है वह रुद्राष्टाध्याई का 1 बार पाठ किया जाता है इसे रुद्र अभिषेक कहा जाता है। इससे भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं. रुद्राभिषेक से व्यक्ति को रोग, दोष, और कष्टों से मुक्ति मिलती है |